Tuesday, November 20, 2012

मेरा जहां


चल  चले हमसफ़र, कहीं दूर उन साहिलों पे ,
जहाँ बस मै, तुम और तीसरा न हो कोई ,

तन्हइयो में सिमट जायें एक दूजे  इस कदर ,
तकलीफों का अपनी न गुमान हो कोई,

अपनी चाहत में यूँ डूब जाने दे तू मुझे,
तेरे इश्क से हसीन न समां हो कोई,

पीने दे अपने लाभों के महखाने से एक जाम,
कि तेरी महक से मीठा न नशा अब कोई,

पनाह दे अपनी चाहतों के शामियाने में कुछ ऐसे,
तेरा ही काफिला हो बस मंजिल का पता न हो कोई,

बसा ले मुझे अपने दिल के आशियाने में बस,
की तेरे सिवा मेरा और जहां न हो कोई...।

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