Wednesday, May 4, 2011

ख्वाब और हकीकत



वो चाँद जो निकला, वहीँ उस गलियारे से,
रुकने लगी नज़रे तेरे उस चौबारे पे,
छा  गयी रौशनी फिर मेरे अंधियारे में,
वो चाँद जो निकला, वहीँ उस गलियारे से,

ढक गयी कायनात तेर हुस्न के खुमार से,
महकशी सी छाने लगी हम पे तेरे दीदार से,
लडखडाए जो फिर तेरे इश्क में हो के लाचार से,
बदहवासी में फिर यूँ ही फिरने लगे बेकरार से,

पैर लडखडाने लगे जब तेरे करीब आने को,
कराह उठे हम फिर तुम्हे अपना बनाने को,
आईने से तब जागा मेरा अक्स मुझे जगाने को,
बोला ऐ नादान, न जा उसे सताने को,

मुड जो चला कुछ दूर, तो पाया खुद को महखाने में,
खोने चाह तेरे ख्यालों को दूर इस वीराने में,
सफल कब हो पाए हैं तारे चाँद से मिल जाने में,
वो छिप गया फिर चाँद अपने उस आशियाने में !!


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